स्वर -वादी संवादी अनुवादी विवादी


वादी संवादी अनुवादी विवादी स्वर

 

वादी स्वर –

‘प्रयोगे बहुलः स्वरः वादी राजाsत्र गीयते।
सप्तस्वरणां मध्येsपि स्वरे यस्मिन्सुरागता।।

राग का सबसे प्रमुख स्वर वादी स्वर होता है। प्रत्येक राग में वादी तथा संवादी स्वर होता ही है। वादी स्वर को राग दरबार का राजा स्वर कहा जाता हैं। राग के वादी स्वर पर ही उस राग की परख निर्भर होती हैं। राग का सबसे मुख्य अवयव होता हैं।इसे राग का जीव स्वर भी कहा जाता है। राग को गाते एवं बजाते वक्त में स्वर समूह में वादी स्वर सर्वाधिक प्रयुक्त तथा प्रदर्शित किया जाता है। जाती गायन में इसे अंश स्वर कहा गया है।

संवादी स्वर –

राग में लगने वाले थाट के यदि दो भाग किये जाए तो वादी – संवादी अलग-अलग भागों में रहेंगे। वादी तथा संवादी स्वर को राग का आधारस्तंभ माना जाता है।

अनुवादी स्वर –

वादी एवं संवादी के अतिरिक्त राग में जो अन्य स्वर होते हैं उन्हें अनुवादी स्वर कहा जाता है। अनुवादी स्वर का राग में एक अलग ही महत्व हैं।

राग प्रस्तुतिकरण करते वक्त वादी स्वर एवं संवादी स्वर को गाना और बजाना करने में विनिमय तथा संयोजन में अनुवादी स्वर मदत करते है।

विवादी स्वर –

जो स्वर राग में प्रयुक्त नहीं किया जाता उसे विवादी स्वर कहते है। कभी-कभी गायक अथवा वादक राग का स्वरूप प्रस्थापित कर लेते है, परंतु उस राग का सौंदर्य को बढ़ाने के लिए राग में विवादी स्वर का न्यूनरूप प्रयोग करते है।

राग में लगने वाला एक ऐसा स्वर जो महत्व में केवल वादी स्वर की अपेक्षा ही कम हो परंतु उस राग के अन्य स्वरों की अपेक्षा उस स्वर का महत्व अधिक हो उसे संवादी स्वर कहते है। वादी तथा संवादी स्वरों के बीच का अंतर चार अथवा पाँच स्वरों का होता है। विवादी स्वर का बार-बार प्रयोग करने से राग स्वरूप बदल सकता है। राग में विवादी स्वर वो स्वर होता है, जो किसी राग में सामान्य स्वरों के भाती प्रयुक्त नहीं किया जाता।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *