लोक संगीत
शास्त्रीय संगीत का आधार लोक संगीत है अर्थात लोक संगीत से हि शास्त्रीय संगीत कि उत्पत्ती मनी गई है। ऐसा मना जाता है कि लोक संगीत को समझकर जाब विद्वानो ने इसे नियम बद्ध किया तो यह शास्त्रीय संगीत बना। लोक संगीत दो शब्दो से मिलकर बना है लोक तथा संगीत। लोक का अर्थ है जान साधारण तथा संगीत का अर्थ है गायन वादन तथा नृत्य का मिश्रण। अत: लोक संगीत का सामान्य अर्थ हूआ ऐसा संगीत जो जान-साधारण द्वारा गया जाये।
लोक-संगीत जन साधारण की आंतरिक भवनाओ का प्रतिक है। यह देश कि संस्कुती का एक जीता जागता उदाहरण है। किसी भी देश की सांस्कृतिक उन्नती का पता उस देश के लोक संगीत को देख कर चलता है। लोक संगीत को सहज संगीत भी कहा जाता है, इसे सिखने के लिये किसी बंधन कि आवश्यकता नही होती है। प्राचीन काल से हि मानव अपने भावो को गाकर या बाजाकर या नाचकर अभिव्यक्त करता आ राहा है। अपने सुख- दुख तथा जीवन की अनेक घटनाओ को मानव ने संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त किया। अत: र्हुदय के भाओ को व्यक्त करने के लिये जब संगीत का सहारा लिया जाता है, तो वह संगीत लोक संगीत कहलाता है।
लोक संगीत का प्रचार आदिकाल से हि संसार के हर क्षेत्र मे राहा है। वैदिक काल मे विवाह, जन्म आदी के समय मे गाये जाने वाला संगीत लोक संगीत हि था। यह लोक संगीत हर काल मे रहा है तथा उन्नत होता गया है। शास्त्रीय संगीत का उदभव जहा केवल अपने आनंद के लिये हि हूआ था वही लोक संगीत सभी के लिये था।
लोक संगीत सामान्य जन कि सृष्टी है जो अनजाने मे हि हुई। लोक संगीत मे कोई ऐसा नियम नाही होता है जो उसकी भावाभीव्यकती मे बाधा डाले। लोक संगीत मे काव्य सरल, सरल धून, सरल भाषा होती है। इसमे कोई शास्त्र या छंद आदी के नियमो का बंधन नाही होता है।
हर क्षेत्र का अपना लोक संगीत होता है। हर क्षेत्र के लोक संगीत का मुलभूत सिद्धांत एक हि है वह है भावो कि अभिव्यक्ती, आनंद प्राप्ती आदी। अलग-अलग क्षेत्रो के लोक संगीत मे अगर अंतर है तो वह यह है कि किसी लोक संगीत मे एक तरह के वाध्य प्रयुक्त होते है तो कही दुसरे तरह के। क्योकी हर क्षेत्र कि अपनी-अपनी बोली है अत: लोक संगीत के गीत भी वही कि बोलीयो मे होते है।
लोक संगीत के अंतर्गत लोक गीत, लोक नृत्य, लोक नाट्य, सभी आ जाते है। ये सभी मिलकर लोक संगीत का निर्माण करते है। जैसे भाषा के माध्यम से जीन सूक्ष्म भावो को प्रकट नही किया जा सकता उन्हे संगीत स्वर लहरियो के माध्यम से प्रकट किया जाता है। नृत्य से अपने भावो को प्रकट करते है।
लोक संगीत के प्रमुख तत्व स्वर, भाषा, लय तथा ताल है। उन्ही के मिश्रण से लोक संगीत बनता है। अपने भावो को प्रकट करने के लिये इन्ही का अलग-अलग रूप मे सहारा लिया जाता है। उदाहरन के लिये उल्लास, ख़ुशी आदी के समय चंचल ताले प्रयुक्त कि जाती है। शोक, करुण विषाद आदी के समय मे लय कम तथा ताले गंभीर प्रकृती कि हो जाती है। गीतो कि भाषा परिस्थिती के अनुसार बदलती रहती है। अलग-अलग समय के गीत भी अलग-अलग है। जैसे विवाह के गीत, जन्म के गीत, उत्सवो के अवसर पर गाये जाने वाले गीत, ऐतिहासिक पृष्ठभूमी से संबंधित गीत आदी