मोहिनीअट्टम भारतीय शास्त्रीय नृत्य


मोहिनीअट्टम

भारतीय शास्त्रीय नृत्य

 


मोहिनीअट्टम का शाब्दिक अर्थ है, ‘‘मोहिनी’’ के नृत्य के रूप में किया जाता है।
मोहिनीअट्टम शब्द में मोहिनी शब्द आकर्षण का प्रतीक प्रतीत होता है। ‘आट’ या ‘अट्टम’ का अर्थ है नृत्य।
कैकोट्टिकली और कुम्मी इन लोकनृत्यों का भी अंतर्भाव मोहिनीअट्टम नृत्य शैली का हिस्सा माना जाता है।
हिन्दू पौराणिक गाथा की दिव्य मोहिनी, केरल का शास्त्रीय एकल नृत्य-रूप है ।
पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान विष्णु ने समुद्र मन्थन के सम्बंध में और भस्मासुर के वध की घटना के सम्बं‍ध में लोगों का मनोरंजन करने के लिए ‘‘मोहिनी’’ का वेष धारण किया था ।
विष्णु की लीला और क्रियाकला को प्रदर्शित करती है।
इस शास्त्रीय नृत्य यह श्रृंगार रस प्रधान नृत्य शैली है।
यह नृत्य एक मंत्र मुग्ध करने वाला नृत्य है जो कि केरल की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
मोहिनीअट्टम का स्पष्ट  उल्लेख मज्हमंगलम नारायणन नम्बु‍तिरि द्वारा 1709 में लिखित ‘‘व्यवहारमाला’’ पाठों तथा बाद में महान कवि कुंजन नम्बियार द्वारा लिखित ‘‘घोषयात्रा’’ में पाया जाता है ।
केरल के इस नृत्य रूप की संरचना त्रावणकोर राजाओं महाराजा कार्तिक तिरुनल और उसके उत्तराधिकारी महाराजा स्वाति तिरुनल (18वीं-19वीं शताब्दी ईसवी) द्वारा आजकल के शास्त्रीय स्वरूप में की गई थी ।
यह नृत्य का उद्भव केरल के मन्दिरों में हुआ । 
भरतनाट्यम, ओडिसी और मोहिनीअट्टम की एक समान प्रवृत्ति है और उन सभी का उद्भव ‘’देवदासी’’ नृत्य से हुआ ।
मोहिनीअट्टम’ की विशेषता, बिना किसी अचानक झटके अथवा उछाल के लालित्यपूर्ण, ढलावदार शारीरिक अभिनय है ।
‘मोहिनीअट्टम’ के अन्तर्गत अभिनय पर बल दिया जाता है ।
इस शास्त्रीय नृत्य में दक्षिण की दो अत्यंत सुंदर नृत्य शैली भरतनाट्यम और कथकली का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
मोहिनीअट्टम के प्रदर्शनों की सूची अनुक्रम भरतनाट्यम के समान है।
1930 के दशक में राष्ट्रवादी मलयालम कवि द्वारा वल्लथोल नारायण मेनन, जिन्होंने केरल में मंदिर नृत्य पर प्रतिबंध को रद्द करने में मदद की, साथ ही साथ स्थापना भी की केरल कलामंडलम नृत्य विद्यालय और मोहिनीअट्टम अध्ययन, प्रशिक्षण और अभ्यास को प्रोत्साहित किया।
ताल के साथ होने वाले नृत्य को अदावत कहा जाता है।
मोहिनीअट्टम में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले संगीत वाद्य में मृदंगम या मधालम, इदक्का, बांसुरी, वीणा एवं किज्हितलम शामिल हैं। 
राग को सोपाना शैली में गाया जाता है, जो धीमी गति से मधुर शैली में गाया जाता है।
मोहिनीअट्टम में ‘चोलकट’, ‘गणपति’, ‘पंडाडी’, ‘मुखचलम’, ‘करकला’, ‘दंडकम’, ‘अष्टपदी’ कुछ विशिष्ट पारंपरिक नृत्य रचनाएं हैं।
भरतनाट्यम में ‘वर्णमत्र’, ‘पदमत्रा’, ‘जवाली’, ‘तिल्लाना’ आदि का प्रदर्शन किया गया। सभी कर्नाटक संगीत रचनाएं मोहिनीअट्टम में भी की जाती हैं।
यह लास्य प्रकार का नृत्य है जिसे निम्न क्रम में किया जाता है – 1.छोलेकेटू, 2.जातिस्वरम, 3.वर्णम, 4.पदम, 5.विलाना, 6.श्लोकाम, 7.सत्तम

मोहिनीअट्टम नृत्य के प्रमुख कलाकार –

इस नृत्य के गुरुओं में श्रीकृष्ण पणिक्कर का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
कल्याणीकुट्टीअम्मा, हेमा मालिनी, श्री देवी, कुट्टी अम्मा, कोचकुंजी अम्मा, शांताराव, भारती शिवाजी, तारा निदिग्दी, सुनंदा नायर, जयप्रभा मेनन,  पल्लवी कृष्णन, गोपिका वर्मा,विजयलक्ष्मी, राधा दत्ता, स्मिता राजन राघवन नायर,रागिनी देवी,  कनक रेले, कुंजन पणिक्कर, मुकुंदराजा, वलथोल नारायण मेनन, गोपीनाथ


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