पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर में विकसित हुए मणिपुरी नृत्य को मेइतीज़ अथवा मणिपुर घाटी के लोगों के वैष्णव मत से संबद्ध माना जाता है।
यह भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की आठ विभिन्न शैलियों में से एक प्रमुख नृत्य है । मणिपुर में नृत्य धार्मिक और परम्परागत उत्सवों के साथ जुड़ा हुआ है । यहां शिव और पार्वती के नृत्यों तथा अन्य देवी-देवताओं, जिन्होंने सृष्टि की रचना की थी, की दंतकथाओं के संदर्भ मिलते हैं ।
लाई हारोबा मुख्य उत्सवों में से एक है और आज भी मणिपुर में प्रस्तुत किया जाता है, पूर्व वैष्णव काल से इसका उद्भव हुआ था ।
लाई हारोबा नृत्य का प्राचीन रूप है, जो मणिपुर में सभी शैली के नृत्य के रूपों का आधार है । इसका शाब्दिक अर्थ है- देवताओं का आमोद-प्रमोद ।
15वीं सदी ईसवी सन् मे वैष्णव काल के आगमन के साथ क्रमश: राधा और कृष्ण के जीवन की घटनाओं पर आधारित रचनायें प्रस्तुत की गयीं ।ऐसा राजा भाग्यचंद्र के शासन काल में हुआ, इसी समय मणिपुर के प्रसिद्ध रास-लीला नृत्यों का प्रवर्तन हुआ था ।
नृत्य का वर्तमान स्वरूप और प्रदर्शनों का श्रेय राजा भाग्यचंद्र महाराज को दिया जाता है।
पांडुलिपियां इस राजा के आधुनिक मणिपुरी नृत्य के अतुल्य योगदान के लिए पुख्ता सबूत प्रदान करती हैं।
राजा ने गोविंदा संगीता लीला विलास नामक नृत्य पर एक मैनुअल लिखा था।
मणिपुरी नृत्य का एक विस्तृत रंगपटल होता है, तथापि रास, संकीर्तन और थंग-ता इसके बहुत प्रसिद्ध रूप हैं । यहां पांच मुख्य रास नृत्य हैं, जिनमें से चार का सम्बन्ध विशिष्ट ऋृतुओं से है । जबकि पांचवां साल में किसी भी समय प्रस्तुत किया जा सकता है ।
मणिपुरी रास में राधा, कृष्ण और गोपियां मुख्य पात्र होते हैं ।
विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीतगोविन्द की रचनाओं से आई विषयवस्तुएँ इसमें प्रमुख रूप से उपयोग की जाती हैं।
महिला “रास” नृत्य राधा-कृष्ण की विषयवस्तु पर आधारित है जो बेले तथा एकल नृत्य का रूप है।
संकीर्तन – नृत्य मणिपुर की अपनी विशेषता है। पुरुष “संकीर्तन” नृत्य मणिपुरी ढोलक की ताल पर पूरी शक्ति के साथ किया जाता है।
मणिपुरी नृत्य के दो पहलू हैं – 1. लास्य, 2. तांडव। प्रथम अपनी सुकुमारता के लिए प्रसिद्ध है और दूसरा पौरुष तथा पराक्रम का घोतक है।
जगोई और चोलोम मणिपुरी नृत्य की दो मुख्य शौलिया सौम्य है जबकि दूसरा जोशीली जिन्हें संस्कृत साहित्य में वर्णित लास्य और तांडव तत्वों से संबंधित माना जाता है।
मणिपुरी नृत्य की संगति वाद्य – झाल, करताल, पेना(वीणा), इसराज, वंशी, पुंग(मृदंग), एवं ढोलक
नृत्य के साथ ताल – 4 से लेकर 68 मात्रा के मणिपुरी ताल
मणिपुरी नृत्य को शास्त्रीय नृत्य की प्रतिष्ठा देने का श्रेय रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है। शांति निकेतन इस नृत्य का महान केंद्र रहा है। उनका प्रसिद्ध नाटक चित्रांगदा इसी शैली का नृत्य नाट्य है।
मणिपुरी नृत्य के प्रमुख कलाकार –
अमुखी सिंह, गुरु बिपिन सिंह, शांतिवर्द्धन, नलकुमार सिंह, झवेरी बहनें(दर्शन, नयना, सुवर्णा एवं रंजना), सविता मेहता, प्रीति पटेल, कलावती देवी, श्रुति बनर्जी, चारु माथुर, सोनारिका सिंह, गोपाल सिंह आदि।