भरतनाट्यम
भारतीय नृत्य शैली
भरतनाट्यम यह भारत का सब से प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है। यह नृत्य भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। यह नृत्य प्रकार तंजौर तथा तुरनेलवेली आदि दक्षिण भारत प्रदेशों में प्रचलित था। दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु से इस नृत्य का संबंध है। देवदासियों द्वारा यह धार्मिक नृत्य ईश्वर की उपासना करने के लिए मंदिरों में किया जाता रहा है। इनकी शिक्षा नटुवन नामक लोक देते है अथवा यह लोग परंपरागत रूप से प्रदर्शित भी करते है। देवदासियों को मंदिरों में नृत्य की तालीम देना इन नटुवन लोगों का कार्य था। जब भी नृत्य आराधना तथा उपासना के भाव से देखा गया तभी उसे प्रतिष्ठा प्राप्त होती रही। परंतु जब यह नृत्य अपने नैतिक तथा भौतिक धरातल पर समाज में आया तभी यह नृत्य जनता की दृष्टि में त्याज्य हो गया था।
समाज की दृष्टि नृत्य के प्रति पूरी तरह बदल चुकी थी क्योंकि यह वासन का माध्यम बन चुका था। दक्षिण भारत के मंदिरों में आज से कुछ सालों तक यह नृत्य परंपरा जीवित थी।
शास्त्रज्ञ कलाकारों का ध्यान नृत्य के वास्तविक महत्व की ओर गया तथा सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन के माध्यम से इस नृत्य कला को पुनः जीवनदान दिया गया। यह नृत्य भावभिव्यंजना के लिए पूरे जगत में प्रसिद्ध है। यह नृत्य स्त्रियों के लिए उपयुक्त माना गया है।
इस नृत्य में मार्मिक ढंग से राधाकृष्ण तथा अन्य सभी देवी देवताओं की लीलाओं को प्रस्तुत किया जाता है।
मुद्राओं के माध्यम से गीतों के प्रत्येक भावों को सार्थक प्रयासों द्वारा कलाकार प्रसारित करने का प्रयास किया जाता है।
अलारिपु, जैथीस्वरम, शब्दम, वर्णम तथा तिल्लाना यह भावदर्शन तथा लय विभाग इस नृत्य में है।
सर्वप्रथम अलारिपु से नृत्य प्रदर्शित करते हुए इसके बाद जैथीस्वरम, शब्दम, वर्णम तथा तिल्लाना क्रमानुगत विभाग नृत्य में प्रदर्शित किए जाते है।
अलारिपु में ‘समपद’ वही सहज स्थिति में नर्तकी अपने सिर के ऊपर हाथों ले जाकर जोड़े हुए तथा पैरों को अलग-अलग करती है।
इसी स्थिति में नर्तकी अपने सिर , नेत्रों और हाथों को स्वर एवं ताल की लय में हिलाना शुरू करती है।
इसी को रेचक कहा जाता है। यही कार्य जैथीस्वरम में द्रुत लय में किया जाता है।
भरतनाट्यम का वर्णम सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इनमें गीतों का प्रदर्शन शरीर के विभिन्न अंगों तथा प्रत्यंगों से किया जाता है।
अभिनय कल्पना से सजाकर पदम अंग श्रृंगाररस से नृत्य में प्रस्तुत किया जाता है।
उत्तर भारत के तराने के समान तिल्लाना को मृदंग के विभिन्न बोलो के आधार पर अतिद्रुत लय में हाथ, मुँह तथा पुट्ठों की गति दर्शाते है।
भरतनाट्यम नृत्य शैली की नृत्यांगनाएँ-
यामिनी कृष्णमुर्ति, सोनल मान सिंह, पदमा सुब्रह्मणयम, लीला सैमसन, रुक्मिणी देवी,
अरुण्डेल, टी. बाल सरस्वती, एस. के. सरोज, राम गोपाल, मृणालिणी साराभाई,
बैजयंती माला बाली, मालविका सरकार, फोमलावरदन रोहिंटन कामा, स्वप्न सुंदरी,
हेमामालिनी, अलारमेल वल्ली निधि चिदम्बरम, कुमुदनी सखिया, गीता चंद्रन, गीता गणेशन