दिल्ली घराना
यह घराना ख्याल गायकी का प्राचीन घराना राहा है। इस घराने का जन्म तथा विकास मुगल दरबार मे हूआ। बहादूर शहा जफर के गुरु गुलाम हुसेन ( मियां अचपल ) इस घराने के संस्थापक माने जाते है।
दिल्ली घराने का संबंध मुख्य रूप से सारंगीयो से होने के कारण इसमे सुत, मिंड, गमक, लहक आदी का काम विशेष रूप से विलंबित लय मे होता है। स्वरो का आपसी गुथाव तथा जोड-तोड का काम मध्य लय मे अधिक किया जाता है। दिल्ली घराने कि मुख्यतः जटील ताने है। तानो के विचित्र नाम इसी घराने मे देखने को मिलते है। जैसे फंदे कि तान, उडन कि तान, खेच तान झुले कि तान आदी। तानो कि जटिलता तथा विविधता इसे अन्य घरानो से अलग कर देती है। दिल्ली घराने मे विलंबित लय के साथ तीलवाडा, झुमरा, सवारी, ताल का अधिक प्रयोग होता है। मध्य लय कि चीजो के साथ आडाचार ताल, फरदोस्त ताल, आदी उपयुक्त मनी जाती है। द्रुत लय मे तीनताल, एकताल, रूपक आदी ताले प्रयुक्त कि जाती है।
दिल्ली घराणो के कलाकारो मे उ. चांद खां, उ. उस्मान खां। नन्ने खां, संगीत खां, सम्मन खां, उ. मम्मन खां, उ. बुंदू खां। नसीर अहमद, जहूर अहमद, आदी है।
दिल्ली घराने से कई घरानो का जन्म हूआ। जैसे बरेली, आगरा, पटियाला, उज्जैन, आदी।
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