घराणो का इतिहास
घराणो का जन्म मध्यकाल से माना जाता है। मध्यकाल मे मुसलमानो का शासन था। उसमे गायकी मे आनंदरुपता ने स्थान ले लिया।
संगीत के प्रती गायको कि रुचीयो मे परिवर्तनहूआ।
अनेक गायको ने अपनी अपनी रुचिओ के अनुसार संगीत कि भिन्न भिन्न शैलियो का निर्माण किया। प्रत्येक शैलीयो के अलग-अलग प्रवर्तक हो गये।
उन प्रवर्तोको कि एक शिष्य परंपरा चल पडी। प्रत्येक शिष्य-परंपरा मे धीरे-धीरे नयी-नयीशैलीयो का अविष्कार हूआ और इस प्रकार गायन, वादन, तथा नृत्य के अनेक घराणो का विकास हूआ।मध्यकालीन राजदरबारो मे गायको का बडा आदर होता था। उन्हे आर्थिक सहायता दि जाती थी। अधिकांश संगीतज्ञ किसी ना किसी राज्यो का आश्रय लेकर अपनी कला का परीवर्धन कर रहे थे। ग्वालियर राज्य मे हाफिज अली खां साहब अपनी शिष्य
परंपरा का विकास कर रहे थे।
बडौदा राज्य मे उस्ताद फैयाज अली खां का बहुत बडा सम्मान होता था। इसी प्रकार अनेक मध्यकालीन संगीतज्ञ अपनी शिष्य
परंपरा स्थापित करने मे तत्पर थे। वे अपनी शिष्य-परम्परा को जीवित रखने के लिये सर्हुदयता के साथ शिष्यो को संगीत कि शिक्षा देते थे। इन गायको ने धृपद और धमार गायकी के स्थान मे ख्याल गायकी का अविष्कार किया। ख्याल गायकी के सर्वप्रथम प्रवर्तक अमीर खुसरो माने जाते है। उन्होने
सबसे पहले कव्वाली का अविष्कार किया। तत्पश्चात कव्वाली कि शैली का पुट लेकर उन्होने छोटे ख्याल का अविष्कार किया। छोटे ख्याल के बाद बडे ख्याल का प्रचार हूआ। बडे ख्याल के प्रचारक सुल्तान हुसेन शार्की माने जाते थे। ये जौनपुर के रहने वाले थे। ख्याल गायकी के प्रचार और प्रसार के फलस्वरूप
धृपद और धमार गायकी का प्रचार कम होने लगा। धृपद-धमार तथा ख्याल-गायकी के संधी-काल मे जो संगीत के आचार्य थे वे ख्याल गायकी और धृपद गायकी दोनो मे प्रवीण थे। सदारंग और अदारंग धृपद और ख्याल गायकी के प्रसिद्ध कलाकार माने जाते है। सम्राट अकबर के राज्य काल मे संगीत सम्राट तानसेन धृपद गायन के सुविख्यात कलाकार थे। वे धृपद गायन शैली के प्रवर्तक माने जाते है। इस प्रकार उपर्युक्त दोनो शैलीयो के सन्धीकाल मे एक और तानसेन कि धृपद गायन कि और दुसरी और अमीर खुसरो कि ख्याल कि दोनो परम्पराये एक साथ प्रचलित थी, किंतु आगे चल कर ख्याल गायकी के अधिक प्रचार और प्रसार के कारण धृपद गायन का प्रचार कम हो गया।
घराणो कि उत्पत्ती का कारन
भारतीय संगीत मे अनेक घराणे पाये जाते है। गायन, वादन, नृत्य तथा तबले के अनेक घराणे प्रचलित है। सभी घराणो कि उत्पत्ती का
कारण है संगीतज्ञ का जन्मान्तरीय संस्कार। प्रत्तेक संगीतज्ञ का संस्कार भिन्न-भिन्न होता है। भिन्न संस्कार के कारण
प्रत्येक कि रुची भिन्न-भिन्न होती है। आरंभ मे गायन, वादन तथा नृत्य, इनमे से प्रत्येक कि शैली समान थी। किंतु जब गुरु परंपरा के
अंतर्गत शिष्य शिक्षा ग्रहण करणे लगे तो प्रत्येक शिष्य कि रुची भिन्न होने से कोई आलापकारी मे, कोई तान कि तयारी मे, कोई-कोई
बोलतानो के प्रयोग मे तथा कोई लयकारी मे कुशलता प्राप्त कर लेता है। जब वह एक सिद्ध कलाकार हो जाता है तो अपने ढंग से शिक्षा देना प्रारंभ करता है। जीससे प्रत्येक गुरु-परंपरा कि शिखण शैली मे कुछ-न-कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। प्रत्येक गुरु की शैली कि विशेषता एक-दुसरे से भिन्न हो जाती है। गायन शैलीयो कि इन भिन्न-भिन्न विशेषताओ के कारन घराणो कि उत्पत्ती हुई।
घरानों के पीछे की अवधारणा
शिक्षक–छात्र परम्परा या गुरु–शिष्य परंपरा
जब संगीत गायन या संगीत वाद्ययंत्र बजाने या संगीत वाद्ययंत्र बजाने की एक निरंतर शैली और विधि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में 3 या अधिक पीढ़ियों तक चली जाती है, तो एक घराना अस्तित्व में आता है।
जबकि कुछ घराने वाले पिता – पुत्र द्वारा बनते हैं, दूसरों को तब तैयार किया जा सकता है जब एक शिक्षक एक मूल्यवान और पर्वतीय छात्र को उसके प्रशिक्षण और संगीत की शैली से गुजरता है।
घरानों की श्रेणियाँ –
कई अलग–अलग घराने हैं जिन्हें श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है जैसे
स्वर घराने – रचना, ध्रुपद, ठुमरी।
वाद्य यंत्र – तबला घराना, सितार घराना, हवा और स्ट्रिंग उपकरण।
नृत्य घराना
संगीत घरानों की सूची –
- इटावा घराना
- जयपुर घराना
- बनारस घराना
- ग्वालियर घराना
- दिल्ली घराना
- इंदौर घराना
- पटियाला घराना
- आगरा घराना
- किराना घराना
- रामपुर सहसवान घराना
- भेंडी बाजार
- मेवाती घराना
- ध्रुपद घराना