ख्याल गायकी


 ख्याल गायकी

 

उत्तर भारतीय संगीत में ख्याल गायकी सर्वाधिक लोकप्रिय शैली है। ख्याल फ़ारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है विचार या कल्पना करना।
कुछ विद्वान् ख्याल अर्थ स्वेच्छाचार भी मानते है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता अधिक होती है।
गीत का वह प्रकार जिसमें आलाप, तान, खटका, कण आदि विभिन्न अलंकारों द्वारा किसी विशिष्ट राग में उसके नियमों का पालन करते हुए भावों को प्रकट करते है, उसे ख्याल कहते है। इस गायकी में किसी भी राग के स्वरों में आलाप षडज के साथ शुरू किया जाता है। ख्याल गायकी में छोटा ख्याल और बड़ा ख्याल गाया जाता है। बड़े ख्याल में स्थायी का विस्तार विलंबित लय में किया जाता है। ख्याल का विस्तार आलाप, बोल-आलाप, सरगम और तान के साथ किया जाता है। ज्यादातक मौकों पर ये एक ताल, तीन ताल, तिलवाड़ा, झुमरा या रुपक में होता है। बड़े ख्याल को खत्म करते वक्त द्रुत लय में तानों को गाया जाता है। इसके बाद छोटा ख्याल शुरू होता है जो ज्यादातर एक ताल या तीन ताल में होता है। छोटा ख्याल में आलाप, बोल-आलाप के साथ स्थायी और अंतरे पर तान, सरगम और लयकारी का प्रदर्शन किया जाता है। आखिर में स्थायी की तिहाई लेते हुए सम पर गायकी को खत्म किया जाता है।

ख्याल शैली कब आरम्भ हुई इसके विषय में कई मत प्राप्त होते है। एक मत के अनुसार ख्याल गायकी का अविष्कार आमिर खुसरो (1253-1325) ने किया था। एक मत अनुसार 15 वीं शताब्दी में जौनपुर के बादशाह सुलतान हुसैन शर्की ने इस शैली का आविष्कार किया।
विद्वानों के अनुसार मध्यकाल प्रचलित रूपक नामक प्रबंध से ही ख्याल का विकास हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार साधारणी गीति से ही ख्याल का जन्म माना जाता है। इस गीति में अन्य चार गीतियों (गौड़ी, बेरसा, भिन्ना, शुद्धा) का मिश्रण था। विद्वानों एक मत है की नियामत खाँ(सदारंग) को भी ख्याल का आविष्कारक मानते है। चौरासी वैष्णवन की वार्ता नामक वार्ता में एक गायिका द्वारा ख्याल और टप्पा नामक गीतिओं के गायन का उल्लेख मिलता है। अत एव इस शैली के निर्माण में तत्कालीन ख्याल गीतों का योगदान रहा हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। मतभेद तो अनेक हो पर भी आधुनिक काल में यह शैली सबसे प्रमुख गायन शैली बन चुकी है।

ध्रुपद शैली की अपेक्षा ख्याल शैली में गंभीरता काम होती है इसलिए इस गायन शैली में पखावज की जगह पर संगत के लिए तबले का विकास किया गया एवं अनेक नवीन तालों का निर्माण किया गया।
 

ख्याल गायकी की विशेषताएँ –

 

इस गायकी की काव्य की भाषा हिन्दी, उर्दू तथा अन्य होती है। बंदिश शुरू होने से पहले थोड़ा सा राग वाचक आलाप किया जाता है।
इस शैली में स्वरों की सफाई और गले की तैयारी पर विशेष बल दिया जाता है।
आलाप के बाद विलम्बित ख्याल गाया जाता है। यह विलम्बित ख्याल अधिकतर तीनताल, एकताल, झुमरा, तिलवाड़ा आदि तालों में गाया जाता है।
इसके बाद छोटा ख्याल गाया जाता है। इसकी लय मध्य एवं बाद में द्रुत होती है। ख्याल गायकी में राग के लक्षणों के अतिरिक्त कण, मींड, गमक आदि का प्रयोग होता है।
काव्य, लय, स्वर आदि के संयोग से ख्याल गायकी आधुनिक काल की प्रसिद्ध गायन शैली है।

ख्याल गायकी के प्रमुख घराने –

ग्वालियर, आगरा, किराना, जयपुर, दिल्ली, पटियाला, लखनऊ आदि।
ग्वालियर घराने में ख्याल गायकी की सभी विशेषताओं को अष्टांग गायकी के रूप में ग्रहण किया जाता है।
स्वर को अधिक प्रधानता देने वाले किराना घराने के गायक स्वर ऊँचा एवं अधिक विलम्बित रखते हैं।
आगरा घराने में गमक की अधिकता के कारण स्वर कुछ नीचा एवं लय बड़ी हुई होती है।
जयपुर घराने में तान पर अधिक बल दिया जाता है।
 


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