कथकली
भारतीय नृत्य शैली
भारत के दक्षिणतम प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है।
यह दक्षिण भारत के केरल तथा मलबार का मुख्य नृत्य प्रकार है।
कथा-केली इस से कथकली शब्द की निर्मिति हुए है। इस शब्द का अर्थ नृत्य नाट्य होता है। कृष्ण नाट्य तथा राम नाट्य के रूप में मलबार क्षेत्र में यह परम्परा प्रचलित रही है।
कथकली का नाम एवं वर्तमान में रूप देने का श्रेय त्रावनकोर के महाराजा वीरकेरल वर्मा (ई.17) को ही जाता है। इन के गीतों पर जयदेव के गीतगोविन्द का स्पष्ट प्रभाव रहा है।
इसमें रामायण एवं महाभारत की कथाओं का अभिनय केवल मुद्राओं के द्वारा किया जाता है।
नृत्य में केवल मुद्राओं के माध्यम से मुक अभिनय इस कि विशेषता होती है।
यह मुद्राएँ भरतनाट्यम की मुद्राओं से अधिक क्लिष्ट तथा अधिक जटिल होती है।
इस नृत्य में केवल पुरुष ही भाग लेते है। इस में स्त्रियों की भूमिका भी पुरुषों द्वारा ही की जाती है
वेशभूषा तथा साजसज्जा इस नृत्य मुख्य विशेषता है।
इसमें चक्कियार कुथू और कुटिम टम जैसे केरल के प्राचीन नृत्य नाट्यों की परम्परा को सुरक्षित रखा गया है।
मुख सज्जा के अंतर्गत भिन्न-भिन्न पात्रों के लिए भिन्न-भिन्न रंगों का लेप निर्धारित किया गया है।
मुख को लाल या पिले रंग से रंगा जाता है और आँखों एवं भौहों के चारों ओर सफेद रंग की रेखाएँ खींची जाती है, जिसे चुट्टी कहा जाता है। कथकली में सिर की वेशभूषा का अधिक महत्व है।
इसे पात्र की उच्चता-नीचता की जानकारी मिलती है। यह नृत्य पूरी रात तक चलता रहता है।
आरम्भ होने से पूर्व चैंदाकरन अर्थात ढोल वादक ढोल बजाकर इसकी सूचना देता है।
मंच पर प्रस्तुत करने से पूर्व इसका पूर्वाभ्यास सेवाकलि के रूप में मंदिर में किया जाता है।
कलारी नामक शारीरिक शिक्षा संस्थान में नृत्य सीखने के इच्छुक विद्यार्थी को भर्ती किया जाता है।
यहाँ शरीर सुदृढ़ तथा लचीला बनाने के लिए विविध व्यायामों सिखाये जाते है।
तेल से शरीर की मालिश और आंखों, होठों, गालों, मुंह और गरदन के विशेष कसरत शामिल हैं।
नृत्य और गीतम के साथ अभिनय या अभिव्यक्ति का महत्व है।
कथकली के प्रमुख कलाकार –
कृष्णन कुट्टी, माधवन एवं आनन्द शिवरामन, उदयशंकर रामगोपाल, शान्ताराव बल्लथोल, नारायण मेनन, मृणालिनी साराभाई, कृष्ण नायर आदि। इस नृत्य मण्डलम रामन कुट्टी प्रमुख कलाकार है।
सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण संस्था – केरल कलामण्डलम (भारतपुझा)